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खुशखबरी: धीमी गति से रूप बदल रहा कोरोना अब और ज्यादा संक्रामक नहीं होगा

लंदन . दुनियाभर में तबाही मचाने वाला कोरोना वायरस अब धीमी गति से अपना रूप बदल रहा है। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन के शोध से यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अब तक वायरस के आनुवांशिक तत्वों में हुआ एक भी बदलाव उसे और ज्यादा संक्रामक नहीं बनाता। इससे साफ है कि वायरस फैलने की गति और घातक क्षमता में कमी आई है। जबकि पूर्व के शोध में कहा गया था कि भले वायरस धीमी गति से फैल रहा हो पर ज्यादा घातक हो गया है।

टीका बनने पर असरकारी होगा-
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर कोविड-19 वायरस में म्यूटेशन या रूप परिवर्तन बहुत धीमा हो रहा है तो इसका फायदा कोविड का टीका तैयार होने पर मिलेगा। यह टीका ज्यादा लंबे वक्त तक लोगों को वायरस से सुरक्षा दे सकेगा क्योंकि वायरस समय गुजरने के साथ और शक्तिशाली नहीं हो रह पाएगा।
वायरस अब स्थायी रूप में मौजूद-
कैंब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े और शोध के अग्रणी वैज्ञानिक डॉ. जेफ्री स्मिथ का कहना है कि वायरस रफ्तार और क्षमता के लिहाज से अब ज्यादा स्थायी है। इसकी आसानी से पहचान के साथ सही ढंग से उपचार हो सकता है। रॉयल सोसायटी के साइंस इन इमरजेंसी टास्क फोर्स ने इस अध्ययन को प्री-प्रिंट के रूप में ऑनलाइन प्रकाशित किया है।

घातक नहीं बन रही बीमारी-
शोधकर्ताओं ने जीनोम शृंखला का अध्ययन कर पाया कि धीमी गति से हो रहे रूप परिवर्तन के बावजूद वायरस के अंदर ऐसे गुण विकसित नहीं हो रहे हैं, जिससे वायरस का नया स्ट्रेन किसी दवा के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ले। ऐसे में शोधकर्ताओं का भरोसा है कि यह वायरस अब बीमारी को और ज्यादा संक्रामक और जानलेवा नहीं बना रहा है।

प्रयोगशाला में तैयार नहीं हुआ वायरस-
वैज्ञानिकों ने वायरस की उत्पत्ति का भी अध्ययन किया। उनका कहना है कि वायरस किसी प्रयोगशाला में तैयार नहीं हुआ। सार्सकोव-2 व अन्य वायरसों की आनुवांशिक प्रकृति के बीच इतना अंतर है कि इसे प्रयोगशाला में बनाना असंभव है। वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन में फैले कोविड-19 वायरस के स्ट्रेन की ट्रेसिंग की। उन्होंने पाया कि वायरस के 97 प्रतिशत निकटतम गुण वाला एक अन्य वायरस ‘आरएटीजी13’ चीन के चमगादड़ों में मौजूद था। हालांकि दोनों वायरस के आनुवांशिक तत्वों की जांच में काफी भिन्नता मिली। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 और कोरोना प्रजाति के अन्य वायरस में इतना ज्यादा अंतर है कि इसे लैब में तैयार करना संभव नहीं है।

पहले का दावा- नौ गुना तेजी से फैल रहा संक्रमण-
जुलाई में सेल पत्रिका में छपे शोध में कहा गया कि वायरस का नया रूप ‘जी614’ पूरी दुनिया में तेजी से संक्रमण फैला रहा है, हालांकि यह संक्रमण पहले के स्ट्रेन की तुलना में ज्यादा घातक नहीं है। कैलिफोर्निया के ला जोला इंस्टीट्यूट फॉर इम्यूनोलॉजी के शोध में कहा गया कि नया स्ट्रेन नौ गुना तेजी से दुनिया में वायरस को फैला रहा है। मार्च की शुरूआत में इसकी मौजूदगी यूरोप में थी और मार्च के अंत तक यह अमेरिका तक फैल चुका था।

फरवरी में शुरू हुआ था म्यूटेशन –
कोरोना के आनुवांशिक तत्वों में आंशिक बदलाव या म्यूटेशन सबसे पहले फरवरी में देखा गया। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि यूरोप से अमेरिका में वायरस का बदला हुआ स्वरूप फैला।

रॉयल सोसायटी के शोध का महत्व-
रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की स्थापना 1660 में हुई थी, यह ब्रिटेन की सबसे पुरानी वैज्ञानिक संस्था है। कोरोना संक्रमण के इस आपातकाल में रॉयल सोसायटी एक विशेष टास्क फोर्स बनाकर इस वायरस से जुड़े अध्ययन कर रहा है। इस ताजा शोध की अभी समीक्षा होना बाकी है, जिसके बाद इसे जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा। पर सोसायटी से जुड़े प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के अध्ययन को इस क्षेत्र से जुड़े अन्य वैज्ञानिक उम्मीद के तौर पर देख रहे हैं।

सोसायटी ने सबसे पहले बताई थी मास्क की जरूरत-
रॉयल सोसायटी उन वैज्ञानिक संस्थाओं में से एक है, जिससे सबसे पहले कहा था कि सिर्फ तालाबंदी से संक्रमण नहीं रोका जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि सार्वजनिक जगहों पर लोगों को फेसमास्क लगाने को प्रेरित किया जाए और वे शारीरिक दूरी अपनाएं।

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